Dr. Varsha Singh |
छिपे हुए शब्द कई
गढ़ते हैं प्यार की
अनगढ़ सी कथा नई
सपनों से राह जुड़ी
अपनों से दूर हुई
बचपन की सोनपरी
जाने अब कहां गई
इंतज़ार की घड़ियां
स्थिर सी लगती सुई
कलियां उम्मीद की
रह जातीं बिना छुई
मन हुआ कपासी तो
दूर - दूर उड़ी रुई
यहां मगर आंखों से
आंसू की बूंद चुई
- डॉ वर्षा सिंह
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