Varsha Singh
कवयित्री / शायरा डॉ. वर्षा सिंह
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शनिवार, जुलाई 23, 2016
My Poetry
भोर हो कर भी ज़िन्दगी ठहरी
गर ख़ुमारी न रात की उतरी
ज़िद पे गर आ गये विफल होगी
लाख़ दुश्मन की चाल हो गहरी
आइये मिल के हम करें कोशिश
हो न 'वर्षा' कहीं कभी ज़हरी
- डॉ वर्षा सिंह
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