Varsha Singh
कवयित्री / शायरा डॉ. वर्षा सिंह
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शनिवार, जुलाई 23, 2016
My Poetry
बज रही बांसुरी
सज रही ज़िन्दगी
चांद की आहटें
सुन रही चांदनी
मन में कान्हा बसे
रोशनी - रोशनी
इश्क़ गढ़ने लगा
हर तरफ आशिक़ी
नेह - "वर्षा" हुई
भीगती शायरी
- डॉ वर्षा सिंह
My Poetry
भोर हो कर भी ज़िन्दगी ठहरी
गर ख़ुमारी न रात की उतरी
ज़िद पे गर आ गये विफल होगी
लाख़ दुश्मन की चाल हो गहरी
आइये मिल के हम करें कोशिश
हो न 'वर्षा' कहीं कभी ज़हरी
- डॉ वर्षा सिंह
बुधवार, जुलाई 20, 2016
My poetry.....
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शनिवार, जुलाई 16, 2016
My Poetry
रविवार, जुलाई 10, 2016
My Poetry
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