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रविवार, फ़रवरी 07, 2016

वसंत पर बुंदेली बोली में मेरा लेख "पत्रिका" समाचार पत्र में ....



  लेख
        ओ रे, पाऊने बसंत...
          तुमाये आबे की...!
                       - डॉ. वर्षा सिंह

ओ रे पाऊने बसंत...!!! तुमाये आबे की खबर हमें लग गई। इत्ते दिना कहां रये ? ... तुमें हमाई तनकउ खबर ने आई ? बाकी हमने तो तुमें खूबई याद करो। काय से के पूस को जड़कारो...ओ जड़कारो ऐसो के -
   कन्हैया बिना, कौन हरे मोरी पीरा। 
   पूस मास में ठंड जो ब्यापे, 
   माघ में हलत सरीरा।।
     जंगल, गांव, सहर सबई को हाल बुझो-बुझो सो हतो। ने कोउ रंग, ने कोउ ढंग। जबईं देखो, धुंधयारो सो छाओ रहत तो। कोउ को कछु काम में जी न लगत तो। तुम आए तो तनक ढाढस बंधी। भुनसारे से कोयल के बोल, कानों में रए मिसरी सी घोल....मौसम को कछु-कछु होन लगो, सोत-सोत सो मनो सूरज जगो। अमुआ बौरा गए, टेसू औ सेमल फूलन लगे। ढुलकिया की थापें औ रमतूला की टेरें, सगोना को मनो कामदेव घेरें।  जेई लाने कहनात आए –आम के ब्याओ में सगौना फूलो’।
     इते चलन लगी बयार फगुनाई की, उते ठुमरी, चकरी, गिरदी होन लगी राई की। रागें औ फागें, बधाओ औ ढिमरियाई, जे सब बुंदेलन ने नोनी चलाई, काए से के बसंत ! तुमाई रुत आई। औ जोन जे तुमाई रुत आई तो जो लगो के पद्माकर ने कही रही सांची -
   बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में।
   बनन में, बागन में  बगरो  बसंत है।।
अब जो सबई ओर दिखत हो तुमई तुम, सो आ रईं याद ईसुरी की जे लकीरें -
अब रुत आई बसंत बहारन, 
पान फूल फल डारन।
कपटी कुटिल कंदरन बहिं,  
गई  वैराग  बिगारन।।
कोऊ कहत है-आ गओ बांको बसंत’, तो कोऊ कहत है के आ गओ बैरी बसंत’ ....। ओ पाऊने बसंत ! तुम कोऊ के लाने कछु हो, तो कोऊ के लाने कछु। जोन के मन हरे-भरे, उनके लाने बांके बसंत’। जोन के मन पीर भरे, उनके लाने बैरी बसंत’।
तुम जो आए तो फूलन की बहार लाए। सरस्वती मैया खों पूज रए लुगवा-लुगाईयां, जो करी जाए बात आज के नए मोड़ा-मोड़ी की, सो व्हाट्सएप्प’ पे चलन लगी तुमाए आबे की बधाइयां। भली करी आए जो तुम पाऊने बसंत....हो गओ सबकी दुख-पीरा को अंत।
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