Dr Varsha Singh |
सूखी धरती पर पड़े, पानी की बौछार ।
हरियाये मन दूब सा, करे नया श्रृंगार ।। 1 ।।
भीग रहे हैं साथ में, धरती औ आकाश ।
बांध रहा है फिर इन्हें, बूंदों वाला पाश ।। 2 ।।
बाग-बगीचे खिल गए, खुशबू वाले फूल ।
अब मौसम लगने लगा, एकदम ही अनुकूल ।। 3 ।।
कागज की नावें चलीं, लिए ढेर सा प्यार ।
जो प्रियतम उस पार है, आ जाये इस पार ।। 4।।
पत्तों-पत्तों पर लिखें, बूंदें अपना हाल ।
पढ़-पढ़ कर वे पंक्तियां, झुकती जाये डाल ।। 5।।
फूलों से लदने लगी, फिर कदम्ब की डाल ।
बजी बंसुरिया दूर पर, बदली- बदली चाल ।। 6।।
दादुर बोले सांझ को, कोयल बोले भोर ।
दोपहरी को कर रहीं, बूंदें मिल कर शोर ।। 7 ।।
इन्द्रधनुष दिखने लगे, कभी बीच बरसात ।
जैसे कोई ठहर कर, कर ले मीठी बात ।। 8 ।।
भरी नदी, नद भर गए, भरी लबालब झील ।
मनमानी जलधार की, सुनती नहीं दलील ।। 9 ।।
"वर्षा" बादल से कहे,
बरसो इतना रोज़ ।
प्यासी धरती तृप्त हो, रहे न जल की खोज ।। 10 ।।
- डॉ वर्षा सिंह
सामयिक दोहे , बहुत खूबसूरती से लिखे , बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब दोहे।
जवाब देंहटाएंBhadiya
जवाब देंहटाएंवर्षा ऋतु पर लिखी हुई आपकी कविता बहुत ही सुंदर है
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंशानदार पावस पावन दोहे
जवाब देंहटाएंअत्युत्तम भावाभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना है आपकी
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