पेज

गुरुवार, जून 20, 2019

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2019 पर विशेष बुंदेली गीत - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

मेरे बुंदेली गीत को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 21 जून 2019 में स्थान मिला है। 
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...

http://yuvapravartak.com/?p=16068


अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2019 पर बुंदेली गीत 

योगासन है सबसे न्यारो

            - डॉ. वर्षा सिंह


हो गई भोर सुहानी, ओ बिन्ना

काय परी अलसानी, ओ बिन्ना

मूंड़ पे डारे चदरा- पटका

कसर-मसर तोड़त हो पलका
उठ बैठो महरानी, ओ बिन्ना
हो गई भोर सुहानी, ओ बिन्ना

उठ के कारज रोज के कर ल्यौ

भगवन की छवि ध्यान में धर ल्यौ
भूल के बात पुरानी, ओ बिन्ना
हो गई भोर सुहानी, ओ बिन्ना

भारत देस हमारो प्यारो

योगासन है सबसे न्यारो
दुनिया जाकी दिवानी, ओ बिन्ना
हो गई भोर सुहानी, ओ बिन्ना

काया के सब रोग मिटा ल्यौ

योग करन की लगन लगा ल्यौ
छोड़ो अब मनमानी, ओ बिन्ना
हो गई भोर सुहानी, ओ बिन्ना

                  -----------



#बुंदेलीवर्षा


बुंदेली गीत - डॉ. वर्षा सिंह


अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस - डॉ. वर्षा सिंह

शनिवार, जून 15, 2019

पितृ दिवस ( फादर्स डे, रविवार, 16 जून 2019) पर विशेष गीत .... पिता यहीं हैं पास - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
यह सिर्फ़ एक गीत ही नहीं, वरन् मेरा आत्मकथ्य भी है....

पिता यहीं हैं पास ...

            - डॉ. वर्षा सिंह

हरदम इक अहसास बना सा रहता है।
पिता यहीं हैं पास, हमेशा लगता है ।।

पिता हुए स्वर्गीय, समय प्रतिकूल हुआ,
निपट अकेली मां ने है पाला-पोसा,
बचपन मेरा था कितना संत्रास घिरा,
बिना पिता की छाया के संघर्ष भरा,
किन्तु पिता की छवि ताज़ा हो जाती है
जब तूफान कहीं कोई भी उठता है।
पिता यहीं हैं पास, हमेशा लगता है ।।

कभी -कभी मन किन्तु ये सोचा करता है,
याद पिता को अक्सर करता रहता है,
पिता अगर जीवित होते तो क्या होता !
जैसा अब है, जीवन वैसा ना रहता,
मेरी अपनी दुनिया भी रोशन होती
अंधियारों में एक दिया - सा जलता है।
पिता यहीं हैं पास, हमेशा लगता है ।।

रक्त उन्हीं का रग में मेरी दौड़ रहा,
जिनका तेजस्वी स्वरूप है मुझे मिला,
ईश्वर को मंजूर यही तो बेशक़ ही,
मुझे नियति से कभी न कोई रहा गिला,
किन्तु न उनका होना भी तो खलता है
बन कर जैसे फांस हृदय में चुभता है।
पिता यहीं हैं पास, हमेशा लगता है ।।
      --------------------

मेरे इस गीत को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 16 जून 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...


पितृ दिवस पर गीत - डॉ. वर्षा सिंह


Happy Father's Day

शुक्रवार, जून 07, 2019

😥 क्या हुआ है आज मेरे देश को ... ! 😔


लग रहा संवेदनाएं मर चुकीं
क्या हुआ है आज मेरे देश को।

क्या कहें काली हुई क्यों ये ज़मीं
क्या हुआ है आज मेरे देश को।

बच्चियां भी अब सुरक्षित हैं नहीं
क्या हुआ है आज मेरे देश को।
        - डॉ. वर्षा सिंह


बुधवार, जून 05, 2019

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष बुंदेली गीत.... अपनी बुंदेली धरती- डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       विश्व पर्यावरण दिवस पर मेरे बुंदेली गीत को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 04 जून 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏

मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=15420

बुंदेली गीत
         - डॉ. वर्षा सिंह

बिन पानी के कूड़ा- माटी
हो गईं सबरी कुइयां
मारे -मारे फिरत ढोर हैं
प्यासी फिर रईं गइयां
गरमी की जे मार परी है
सूखे ताल- तलइया।।

सूरज तप रऔ ऐसोे जैसे
भट्ठी इतई सुलग रई
भीतर- बाहर, सबई तरफ जे
लू की लपटें लग रईं
कौन गैल पकरें अब गुइयाँ
मिलत कहूं ने छइयां ।।

बांध रये सब आशा अपनी
मानसून के लाने
जब से झाड़- पेड़ सब कट गए
बदरा गए रिसाने
पूछ रये अब “वर्षा” से सब
बरसत काये नइयां ।।

ईमें सोई गलती अपनई है
नाम कोन खों धरिये
मनयाई मानुस ने कर लई
को कासे अब कईये
अब ने जे गलती दुहरायें
कसम उठा लो भइया ।।

ताल- तलैया गहरे कर लो
पौधे नए लगा लो
रहबो चइये साफ कुंआ सब
ऐसो नियम बना लो
जे अपनी बुंदेली धरती
बनहे सोनचिरइया ।।
        ---------------

#बुंदेलीवर्षा

बुंदेली गीत - डॉ. वर्षा सिंह