कैमरे की नज़रों से
देखा जब खुद को
जीवन के बोझिल पल
सहज लगे मुझको
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शुक्रवार, जून 30, 2017
बुधवार, जून 21, 2017
रविवार, जून 18, 2017
Happy Father's Day
Dear friends,
Today Father's day....
I miss my father. My 🅿🅰🅿🅰
I love him and remember him always.
Dad, wherever you are, you are gone but you will never be forgotten.
- Conrad Hall
#HappyFathersDay
रविवार, जून 11, 2017
पावस के दोहे - डॉ. वर्षा सिंह
प्रकृति-हृदय में आ गई, खुशहाली की बाढ़ ।।
अब ढूंढे से भी नहीं, कहीं दिखेगी धूल ।।
धरती हरियाने लगी, भीगी सूखी देह।।
रिमझिम का संगीत है, "वर्षा" के दिन- रात ।।
आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानु
प्रिय मित्रों,
आज आषाढ़ मास का पहला दिन है और मुझे याद आ रही हैं महाकवि कालिदास की यह पंक्तियां....
आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानु
वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श।।
- महाकवि कालिदास
(मेघदूतम्)
आषाढ़ मास के पहले दिन पहाड़ की चोटी पर झुके हुए मेघ को विरही यक्ष ने देखा तो उसे ऐसा लगा मानो क्रीड़ा में मगन कोई हाथी हो।
महाकवि कालिदास रचित महाकाव्य मेघदूतम् की कथावस्तु इस प्रकार है.....
अलका नगरी के अधिपति धनराज कुबेर अपने सेवक यक्ष को कर्तव्य-प्रमाद के कारण एक वर्ष के लिए नगर - निष्कासन का शाप दे देते हैं। वह यक्ष अलका नगरी से सुदूर दक्षिण दिशा में रामगिरि के आश्रमों में निवास करने लगता है। सद्यविवाहित यक्ष जैसे - तैसे आठ माह व्यतीत कर लेता है, किंतु जब वह आषाढ़ मास के पहले दिन रामगिरि पर एक मेघखण्ड को देखता है, तो पत्नी यक्षी की स्मृति से व्याकुल हो उठता है। वह यह सोचकर कि मेघ अलकापुरी पहुँचेगा तो प्रेयसी यक्षी की क्या दशा होगी, अधीर हो जाता है और प्रिया के जीवन की रक्षा के लिए सन्देश भेजने का निर्णय करता है। मेघ को ही सर्वोत्तम पात्र के रूप में पाकर यथोचित सत्कार के अनंतर उससे दूतकार्य के लिए निवेदन करता है। रामगिरि से विदा लेने का अनुरोध करने के पश्चात यक्ष मेघ को रामगिरि से अलका तक का मार्ग सविस्तार बताता है। मार्ग में कौन-कौन से पर्वत पड़ेंगे जिन पर कुछ क्षण के लिए मेघ को विश्राम करना है, कौन-कौन सी नदियाँ जिनमें मेघ को थोड़ा जल ग्रहण करना है और कौन-कौन से ग्राम अथवा नगर पड़ेंगे, जहाँ बरसा कर उसे शीतलता प्रदान करना है या नगरों का अवलोकन करना है, इन सबका उल्लेख करता है। उज्जयिनी, विदिशा, दशपुर आदि नगरों, ब्रह्मावर्त, कनखल आदि तीर्थों तथा वेत्रवती, गम्भीरा आदि नदियों को पार कर मेघ हिमालय और उस पर बसी अलका नगरी तक पहुँचने की कल्पना यक्ष करता है। उत्तरमेघ में अलकानगरी, यक्ष का घर, उसकी प्रिया और प्रिया के लिए उसका सन्देश- यह विषयवस्तु है।