मंगलवार, जनवरी 26, 2021

अमृत है गणतंत्र | गीत | गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं | डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

गीत

अमृत है गणतंत्र 
       -डॉ. वर्षा सिंह

शान तिरंगा है, अपनी आन तिरंगा है ।
सारी दुनिया से कह दो सम्मान तिरंगा है।

नहीं झुका है सिर भारत का 
नहीं झुकेगा ये,
विश्वपटल पर गुरु गरिमा से
दिव्य बनेगा ये,
देशभक्ति गौरवगाथा का गान तिरंगा है।
सारी दुनिया से कह दो सम्मान तिरंगा है।

हम भारत के वासी, 
हमको निर्भय रहना है,
अपनी आजादी को हरदम 
अक्षुण्ण रखना है,
हर इक भारतवासी का अभिमान तिरंगा है।
सारी दुनिया से कह दो सम्मान तिरंगा है।

लोकतंत्र की सदा आरती
तन-मन से की है,
संविधान की पंक्ति-पंक्ति को
अदरांजलि दी है,
अमृत है गणतंत्र और वरदान तिरंगा है।
सारी दुनिया से कह दो सम्मान तिरंगा है।

"वर्षा" हमने जन्मभूमि को 
मां का मान दिया,
वीरों ने अपना जीवन 
इस पर कुर्बान किया,
रहे सदा सबसे ऊंचा अरमान तिरंगा है।
सारी दुनिया से कह दो सम्मान तिरंगा है।

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सोमवार, जनवरी 25, 2021

राष्ट्रीय मतदान दिवस | शुभकामनाएं | डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय ब्लॉग पाठकों,
        25 जनवरी, राष्ट्रीय मतदान दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🌹
         आज मेरी माता जी डॉ. विद्यावती "मालविका" का राष्ट्रीय मतदान दिवस के अवसर पर लिया गया वक्तव्य, "पत्रिका" समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ है, जो निम्नानुसार है -

"मतदान लोकतांत्रिक देश के नागरिकों का सबसे बड़ा अधिकार है। मैं सन् 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव से निरंतर मतदान करती आ रही हूं। मतदान कर के हमेशा मैंने महसूस किया है कि जैसे राष्ट्र के विकास और स्वरूप के निर्धारण में मेरा भी महत्वपूर्ण योगदान है।   अब तो "नोटा" के जरिए मतदान को और भी लोकतांत्रिक बना दिया गया है। सभी को विशेष कर युवाओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए।"
- डॉ. विद्यावती "मालविका"
वरिष्ठ साहित्यकार एवं सेवानिवृत्त व्याख्याता, सागर, मध्यप्रदेश

हार्दिक आभार पत्रिका  🙏🍁

साथ ही राष्ट्रीय मतदान दिवस के अवसर पर प्रस्तुत है मेरी एक गीतिका ....

हम सदैव मतदान करें
लोकतंत्र का मान करें

चुनने को प्रतिनिधि अपना
जनजागृति का गान करें

कितनी ताकत एक वोट में
इसकी हम पहचान करें

बहकावे से दूरी रख कर
स्वविवेक का ध्यान करें

हम भारत के  वासी "वर्षा"
भारत पर अभिमान करें

         - डॉ. वर्षा सिंह

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रविवार, जनवरी 24, 2021

गणतंत्र दिवस और काव्य के विविध रंग | गणतंत्र दिवस | गीत | ग़ज़ल | कविता | डॉ. वर्षा सिंह

🌹 गणतंत्र दिवस और काव्य के विविध रंग 🌹

                      -डॉ. वर्षा सिंह

Dr Varsha Singh

प्रिय ब्लॉग पाठकों,
🌹 गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹

जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारा देश भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ और 26 जनवरी 1950 को इसके संविधान को आत्मसात किया गया, जिसके अनुसार भारत देश एक लोकतांत्रिक, सम्प्रभुतापूर्ण गणतंत्रिक देश घोषित किया गया। 26 जनवरी 1950 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण कर भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया। यह अविस्मरणीय पल भारतीय इतिहास के ऐतिहासिक क्षणों में दर्ज है। तब से हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है तथा इस दिन देशभर में राष्ट्रीय अवकाश रहता है।

    कवियों, शायरों, गीतकारों ने अपने सृजन के रंगों से गणतंत्र के अनेक विविधरंगी काव्य सृजित किए। कुछ चुने हुए काव्य यहां प्रस्तुत हैं -


हाइकु - जन गण मन

- मीना भारद्वाज

Meena Bhardwaj


शुभ्र गगन

गूंजे जयहिंद से

धरा अखंड ।


पुनीत पर्व

जन गण मन में

भारतवर्ष ।


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सिसक रहा गणतन्त्र

- डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Dr Roop Chandra Shashtri 'Mayank'

गाकर आज सुनाता हूँ मैं,

गाथा हिन्दुस्तान की।

नहीं रही अब कोई कीमत,

वीरों के बलिदान की।।


नहीं रहे अब वीर शिवा,

राणा जैसे अपने शासक,

राजा और वजीर आज के,

बने हुए थोथे भाषक,

लज्जा की है बात बहुत,

ये बात नहीं अभिमान की।

नहीं रही अब कोई कीमत,

वीरों के बलिदान की।।


कहने को तो आजादी है,

मन में वही गुलामी है,

पश्चिम के देशों का भारत,

बना हुए अनुगामी है,

मक्कारों ने कमर तोड़ दी,

आन-बान और शान की।

नहीं रही अब कोई कीमत,

वीरों के बलिदान की।।


बाप बना राजा तो उसका,

बेटा राजकुमार बना,

प्रजातन्त्र की फुलवारी में,

उपजा खरपतवार घना,

लोकतन्त्र में गन्ध आ रही,

खद्दर के परिधान की।

नहीं रही अब कोई कीमत,

वीरों के बलिदान की।।


देशी नाम-विधान विदेशी,

सिसक रहा गणतन्त्र यहाँ,

लचर व्यवस्था देख-देखकर,

खिसक रहा जनतन्त्र यहांं

हार गई फरियाद यहाँ पर,

अब सच्चे इन्सान की।

नहीं रही अब कोई कीमत,

वीरों के बलिदान की।।


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गणतंत्र हमारा

- डॉ (सुश्री) शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh

आजादी का भान कराता है गणतंत्र हमारा।

दुनिया भर में मान बढ़ाता है गणतंत्र हमारा।


खुल कर बोलें, खुल कर लिक्खें, खुल कर जी लें

सबको ये अधिकार दिलाता है गणतंत्र हमारा।


संविधान के द्वारा जिसका सृजन हुआ

प्रजातंत्र की साख बचाता है गणतंत्र हमारा।


धर्म, जाति से ऊपर उठ कर चिंतन का

इक सुंदर संसार बनाता है गणतंत्र हमारा।


पूरब,पश्चिम, उत्तर, दक्षिण- दुनिया में

"शरद" सभी को सदा लुभाता है गणतंत्र हमारा।


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गणतन्त्र दुनिया का अनोखा

- अनिता


Anita

अमृत बरसे है अम्बर से

सूर्य देव को करें प्रणाम,

धरती पर नदियाँ, झीलें

पुण्य धरा सींचें दिन-याम !


संतों की है दीर्घ श्रंखला

 परम सत्य भी यहीं मिला,

योग-संख्य, वेदांत अनूठे

पुष्प भक्ति का यहीं खिला !  


हिम पर्वत से धुर दक्षिण तक

सदियों से गुंजित हैं गान,

धन्य-धन्य स्वयं को मानें हम

भारत की जो हैं सन्तान !


अद्भुत भाषाएँ, बोलियाँ

वेश, खाद्य भी हैं अनगिन,

एक सूत्र बाँधें है सबको

एक भाव बहता निशदिन !


वीर बाँकुरे भारत भू के

सीमाओं पर हैं तैनात,

खलिहानों में कृषक चेतना

श्रम अकूत करती दिन-रात !


उत्सव आज मनाएं मिलकर

सुखमय हो यह विश्व कुटुंब,

गणतन्त्र दुनिया का अनोखा

जहाँ वंशी, गीता व कदम्ब !


लहर उठी है अब क्रांति की

जाग उठा है हर इक जन,

भारत की आत्मा प्रमुदित है

पुलकित है हर जन गण मन !


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अपने वतन को सुधारने की क़सम लीजिये
- देवदत्त प्रसून

Dev Dutta Prasoon

अपने वतन को सुधारने की क़सम लीजिये !

फूले चमन को सँवारने की क़सम लीजिये !!


पी के मद, मदन का रुप क्यों कुरूप कर रहे?

इसको स्नेह में, उतारने की क़सम लीजिये !!


सभ्यता की नाव देखो, आज डूबी जा रही !

करके यत्न इसको, तारने की क़सम लीजिये !!

                        

मन-सुमन, सृजन-पराग से भरा मनुष्य का-

हर कु-गन्ध को, निवारने की क़सम लीजिये !!


जिन्दगी है वसन प्रेम का, बड़ा सुहावना !

ऐसे वसन को निखारने की क़सम लीजिये !!


अजदहा है, आग की, फुहार उगलता हुआ-

लपट भरा लोभ, मारने की क़सम लीजिये !!


 कलियों और फूलों के जिस्म मत जलाइये !

हविश-तपिश से, उबारने की क़सम लीजिये !!


 “प्रसून”, हृदय-पात्र में, जमी हैं तलछटें कई-

इससे प्रेम-रस, निथारने की क़सम लीजिये !!


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गणतंत्र दिवस

- ज्योति देहलीवाल


Jyoti Dehliwal

1- इतना ही कहना काफी नहीं,

भारत हमारा मान है

    अपना फ़र्ज निभाओ,

देश कहे हम उसकी शान हैं !!!

2 - नोटों में लिपटकर,

सोने में सिमटकर, मरे हैं कई

     मगर तिरंंगे से खूबसूरत कोई कफ़न नहीं!!

3 - तुम्ही देश की शान हो, तुम्ही देश का मान हो

जब संरक्षण में हैं देश तुम्हारे, तो हम क्यों परेशान हो

 ऐ वतन के रखवालों, हम तुम्हें सलाम करते हैं

 तुम्हें जन्म देने वाले माता-पिता को प्रणाम करते हैं!!

4 -  वतन हमारा मिसाल मोहब्बत की,

     तोड़ता हैं दीवार नफ़रत की,

     मेरी ख़ुशनसीबी है, मिली जिंदगी इस चमन में

     भुला न सके कोई ख़ुशबू इसकी सातों जनम में!!

5 - न जियो धर्म के नाम पर,

    न मरो धर्म के नाम पर,

    इंसानियत ही हैं धर्म वतन का,

    जियो तो जियो वतन के नाम पर!!

6 -  तहेदिल से मुबारक देते हैं

      चलो आज फ़िर उन आजादी के लम्हों को याद करते हैं

      कुर्बान हुए थे जो वीर जवान भारत देश के 

      उनके जज्बे को सलाम करते हैं

7- मेरे हर कतरे-कतरे में हिंदुस्तान लिख देना,

      और जब मौत हो तिरंगे का कफन देना,

      यहीं ख़्वाहिश हैं कि हर जन्म हिंदुस्तान का वतन देना,

      देना ही हैं तो देशभक्ति का जज्बा देना!!

8 - आन देश की शान देश की,

     देश की हम संतान हैं

     तीन रंगो से रंगा तिरंगा,

     अपनी यह पहचान है!!


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जय भारत जय भारती
- अनुराधा चौहान

Anuradha Chauhan

देशप्रेम हो सबसे ऊपर

तुम देश की शान बनों

तोड़ सकें न कोई तुमको

तुम ऐसी दीवार बनों

हम संतानें भारत माँ की

भारत की पहचान बनों

जात-पात से ऊपर उठकर

मानवता की पहचान बनों

सच्चाई के पथ पर चल

मातृभूमि की शान बनों

कर्मभूमि यह वीरों की

इसका मान बढ़ाना है

विश्व विजयी ओर सबसे प्यारा

तिरंगा हमको फहराना है

भरो हुंँकार जागो युवा

आतंकवाद ने बहुत कुछ छीना

आतंक के घाव मिटाकर

सुख का सूरज ले आना है

याद करो जो शहीद हुए

वो भी किसी की संतान थे

भारत की शान की खातिर

उन्होंने प्राणों का बलिदान दिया

भूलों न इस बलिदान को

आओ मिलकर करें प्रतिज्ञा

मातृभूमि की रक्षा से ऊपर

न हो कोई धर्म दूसरा

देशप्रेमी का युगों-युगों तक

गूंँजता रहता है जग में नाम

गणतंत्र दिवस के अवसर पर

आओ मिलकर शपथ उठाएंँ

जय भारत जय भारती

वंदे मातरम् गूंँजे हर गली


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गणतंत्र दिवस और उदास तिरंगा

- कुसुम कोठारी


Kusum Kothari

तीन रंग का पहने बाना

फहरा रहा जो शान से !

आज क्यों कुछ ग़मगीन !

जिस गर्व से था फ़हरा ,

जो थे उद्देश्य ,

सभी अधूरे , ढ़ह रहे मंसूबे ,

लाखों की बलिवेदी पर

लहराया था तिरंगा !

क्या उन शहीदों का कर्ज चुका पाये?

सोचो हम जो श्वास ले रहे

स्वतंत्रता की वो हवा कहाँ से आई ,

कितनी माँओं ने सपूत खोये ,

कितनी बहनों ने भाई ।

आज स्वार्थ का बेपर्दा होता खेल,

भ्रष्टाचार,आंतक,दुराचार का दुष्कर मेल,

आज चूड़ियाँ छोड़ हाथ में

लेनी है तलवार,

कोई मर्म तक छेद न जाये,

पहले करने होंगें वार,

आजादी का मूल्य पहचान लें

तो ही खुलेंगे मन के तार ,

हर तरह के दुश्मनों का

जीना करदो दुश्वार,

आओ तिरंगे के नीचे हम

आज करें यह प्रण प्राण,

देश धर्म रक्षा हित

सब कुछ हो निस्त्राण ।


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गणतंत्र दिवस

- साधना वैद


Sadhana Vaid

उल्लास लाया

गणतंत्र दिवस

देश गर्वित !


हर्ष प्रसंग 

मनोहारी छटायें

राजपथ पे ! 

विरल दृश्य

संस्कृति औ' सैनिक

मान बढ़ायें !


पावन पल

मनमोहक झाँकी

मुग्ध दर्शक !


वीर जवान

कदम से कदम

मिलाते चलें !


आसमान में

अद्भुत करतब

करें हैरान !


धारे हुए है

हर भारतवासी

वसंती चोला !


गर्व है हमें

गणतंत्र हमारा

विश्व में न्यारा !


संकल्प लेंगे

अपने भारत का

मान रखेंगे !


राष्ट्र पर्व है

छब्बीस जनवरी

मान हमारा !


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बिक रहा हिन्दोस्तां

- गौतम राजरिशी


Gautam Rajrishi

कितने हाथों में यहाँ हैं कितने पत्थर,गौर कर

फिर भी उठ-उठ आ गये हैं कितने ही सर, गौर कर


आसमां तक जा चढ़ा सेंसेक्स अपने देश का

चीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, गौर कर


जो भी पढ़ ले आँखें मेरी, मुझको दीवाना कहे

तू भी तो इनको कभी फुर्सत से पढ़ कर गौर कर


शहर में बढती इमारत पर इमारत देख के

मेरी बस्ती का वो बूढा कांपता 'बर', गौर कर


यार जब-तब घूम आते हैं विदेशों में, मगर

अपनी तो बस है कवायद घर से दफ्तर, गौर कर


उनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां

है जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर


इक तेरे 'ना' कहने से अब कुछ बदल सकता नही

मैं सिपाही-सा डटा हूँ मोर्चे पर, गौर कर


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जय गणतन्त्र
- अनीता सैनी  'दीप्ति'

Anita Saini 'Dipti'

मिट्टी हिंद की सहर्ष जय गणतन्त्र बोल उठी है 

मिटी नहीं कहानी आज़ादी के मतवालों की, 

बन पड़ी फिर ठण्डी रेत पर उनकी कई परछाइयाँ, 

आज़ादी के लिये जिन्होनें साँसें अपनी गँवायीं थीं

कुछ प्रतिबिम्ब दौड़े पानी की सतह पर आये,

कुछ तैर न पाये तलहटी में समाये,

कुछ यादें ज़ेहन में सोयीं थीं कुछ रोयीं थीं, 

 कुछ रुठी हुई पीड़ा में अपनी खोयीं थीं, 

मिट्टी हिंद की सहर्ष  बोल उठी, 

मिटी नहीं कहानी वे छायाएँ-मिट पायी थीं। 


बँटवारे का दर्द भूलकर,

कुछ लिये हाथों में तिरंगा दौड़ रही थीं, 

अधिराज्य से पूर्ण स्वराज का, 

सुन्दर स्वप्न नम नयनों में सजोये थीं,

नीरव निश्छल तारे टूटे पूत-से,

टूटी कड़ी अन्तहीन दासता के आँचल की थीं,

लिखी लहू से आज़ादी की

 संघर्ष से उपजी वीरों की लिखी कहानी थी, 

मिट्टी हिंद की सहर्ष  बोल उठी, 

मिटी नहीं कहानी वे छायाएँ-मिट पायी थी। 


बहकी हवा फिर बोल रही,

बालू की झील में शाँत-सी एक लहर उठी,

नव निर्माण के नवीन ढेर निर्मितकर,

उत्साह जनमानस के हृदय में घोल रही, 

एकता अखंडता सद्भाव के सूत्र, 

पिरोतीं विकास की अनंत  आशाएँ थीं, 

धरती नभ समंदर से चन्द्रभानु भी कहता है, 

लिख रहा हर भारतवासी, 

ख़ून-पसीने से गणतन्त्र की नई इबारत है, 

मिट्टी हिंद की सहर्ष  बोल उठी है, 

मिटी नहीं कहानी वे छायाएँ-मिट पायी थी। 


 

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और अंत में प्रस्तुत है मेरी यानी इस ब्लॉग लेखिका डॉ. वर्षा सिंह की गणतंत्र दिवस संदर्भित एक ग़ज़ल -


लौ न गणतंत्र की बुझाने पाए

  - डॉ. वर्षा सिंह


Dr Varsha Singh

हमने दिल में ये आज ठानी है

एक दुनिया नई बसानी है


जिनके हाथों में क़ैद है क़िस्मत

हर ख़ुशी उनसे छीन लानी है


दिल के सोए हुए चरागों में

इक नई रोशनी जगानी है


दहशतों से भरा हुआ है चमन

एकता की कली खिलानी है


जंगजूओं की महफ़िलों में हमें

प्यार की इक ग़ज़ल सुनानी है


देश आज़ाद रहेगा अपना

इसमें गंगो-जमन का पानी है


लौ न गणतंत्र की बुझाने पाए

ये शहीदों की इक निशानी है


लाख ज़ुल्म-ओ-सितम किए जाएं

अम्न की आरती सजानी है


हिन्द की सरज़मीन जन्नत है

इस पे क़ुर्बान हर जवानी है


तआरुफ़ पूछिए न "वर्षा" का

मेघ और बूंद की कहानी है


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