शुक्रवार, जून 26, 2020

कवि जयशंकर प्रसाद को याद करते हुए (भाग 1).... - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
प्रिय ब्लॉग पाठकों,
आज मैं यहां चर्चा कर रही हूं कवि जयशंकर के कृतित्व पर ...जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890 काशी उत्तर प्रदेश – 15 नवम्बर 1937), हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की, जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी। कामायनी, लहर, झरना आंसू, ध्रुवस्वामिनी, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त  आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं।


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