सोमवार, जून 01, 2020

आपदा के समय : सुख और दुख - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

सुख-दुख
              - डॉ.वर्षा सिंह

समदुःखसुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः।
तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः।।14.24।।

श्रीमद् भगवद्गीता के इस श्लोक का अर्थ है.....
जो धीर मनुष्य सुख-दुःख में सम तथा अपने स्वरूप में स्थित रहता है, जो मिट्टी के ढेला, पत्थर अथवा सोना प्राप्त होने पर सदैव समान व्यवहार करता है, जो प्रिय-अप्रिय स्थितियों में तथा अपनी निन्दा अथवा स्तुति में सम रहता है; जो मान-अपमान में तथा मित्र-शत्रु के पक्षमें सम रहता है जो सम्पूर्ण कर्मों के आरम्भ का त्यागी है, वह मनुष्य गुणातीत कहा जाता है

इसी तरह एक और श्लोक है  वं....

उदये सविता रक्तो रक्त:श्चास्तमये तथा।
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥

जिसका भावार्थ कुछ इस प्रकार है....

उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है, सत्य है महापुरुष सुख और दुःख में समान रहते हैं॥

 यदि दुख न हों तो सुख की कद्र कौन करेगा। दुख और आपदा का समय हमारे धैर्य और साहस की परीक्षा लेता है।  सेवाभावना से जनहित के कार्यों में संलग्न रह कर इस परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ जा सकता है।
 
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